आकर्ण धनुरासन करने कि विधि और उसके फायदे
आज हम आपको आकर्ण धनुरासन को करने कि विधि और उसके फायदे के बारे में बता रहे है। इसके अर्थ को जानने की कोशिश करे तो कर्ण का अर्थ होता है कान और आकर्ण का अर्थ होता है कान के समीप।
इस आसन में शरीर की स्थिति इस प्रकार दिखायी देती है जैसे कोई धनुष की प्रत्यंचा को कान तक खींचकर लक्ष्य को बेधने कि इच्छा रखता हो। इसी कारण इसका नाम आकर्ण धनुरासन रखा गया है। इसे अंग्रेजी में Archer Pose भी कहते है।
कूल्हों और पैरों में लचीलापन लाने के लिए यह आसन बहुत ही महत्वपूर्ण है। आकर्ण धनुरासन को नियमित करने से हाथ-पैरों के जोड़ों के दर्द से छुटकारा मिल जाता है। इस आसन द्वारा पीठ, पेट और छाती के रोग दूर होते हैं।
इस आसन को करने से पहले नावासन, मालासन, अर्ध नावासन आदि को कर सकते है और आकर्ण धनुरासन के बाद पाश्चिमोतानासन और शवासन को कर सकते है। विद्यार्थियों तथा अधिक लेखन-कार्य करने वालों के लिए आकर्ण धनुरासन वरदानस्वरुप हैं ।
इस आसन को करने की विधि:-
इस आसन को करने के लिए एक आसन पर पैर को सीधे फैलाकर बैठ जाये।
इसके बाद बाये हाथ से दाये पैर का अंगूठा और दायें हाथ से बायें पैर के अंगूठे को पकड़ें ।
अब दायें हाथ की कुहनी को धीरे-धीरे पीछे की तरफ खींचते हुये बायाँ पैर मोडकर उसके अँगूठे को दायें कान तक ले जाए।
ध्यान रहे कि हाँथ की मुडी हुई कुहनी सिर के ऊपर की तरफ होनी चाहिए।
और साथ ही दांये पैर को सीधा रखे ।
साँस को कुछ समय के लिए रोककर फिर धीरे धीरे छोड़े।
यह मुद्रा पूरी हुयी ।
इस प्रकार अब दूसरे पैर से भी यह क्रम दोहराऐं।
आकर्ण धनुरासन के फायदे:-
आकर्ण धनुरासन नस चढ़ने की स्थिति में बहुत ही उत्तम होता है।
कब्ज कि समस्या से निजात पाने के लिए इस आसन को करते है।
इससे ख़ासी, दमा और टी .बी. में लाभ होता हैं।
यह आसन कंधे, भुजा, छाती, कमर, जांघों, पीठ और पिंडलियों को मज़बूत और पुष्ट बनाता है।
इस आसन को नियमित रूप से करने पर संपूर्ण नसों और नाड़ियों में रक्त प्रवाह नियमित होने लगता है।
आकर्ण धनुरासन की सावधानिया:-
यदि कुल्हे, पैर और पेट में किसी प्रकार का गंभीर रोग हो तो इस आसन को न करें।
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