ध्यान एक आध्यात्मिक अनुभूति - साधक अंशित

By Sadhak Anshit Yoga Foundation
7th July, 2019

शरीर के सभी अवयव मुख्य ही हैं। परन्तु उन सब में महत्वपूर्ण है मन। वह चंचल है। काम, क्रोध, मद, मोह, आलस्य तथा भय वगैरह प्रवृत्तियों का प्रभाव जब मन पर पड़ता है, तब सारा शरीर उसका अनुभव करता है।

कहा जाता है कि प्रकाश की तरंगें एक सेकंड में 3 लाख किलो मीटर दूर तक प्रसारित होती हैं। लेकिन मन का वेग उससे भी अधिक है।

मन इच्छाओं का निलय है।

एक इच्छा की पूर्ति के बाद दूसरी इच्छा होती है। कर्मेद्रियों तथा ज्ञानेंद्रियों के द्वारा मन बाह्य संसार से संपर्क स्थापित करता है। इन इंद्रियों एवं मन को जीतना ही योगशास्त्र का मुख्य लक्ष्य है।

भजन, कीर्तन, पूजा, यज्ञ, जप, तप, योगासन, प्राणायाम तथा ध्यान आदि इस लक्ष्य की पूर्ति में अधिक सहयोग देते हैं। ध्यान मन को जीतने का एक मुख्य साधन है। शरीर को हिलावें तो मन भी हिलता है| इसलिए शरीर को एक ही आसन की स्थिति में ज्यादा देर तक बिना हिलाये, स्थिर रूप से रखना योगासनों का उद्देश्य है| महर्षि पतंजलि के अनुसार “स्थिरं सुखं आसनं” है। यह स्थिति ध्यान के लिए अत्यंत आवश्यक है। ध्यान मन को दौड़ने नहीं देता | उसे रोकता है।

हर दिन कम से कम 10 या 15 मिनट का एकाग्र ध्यान प्रत्येक मनुष्य के लिए आवश्यक है।


1. ध्यान के लिये आवश्यक सुविधाएँ

1) ध्यान के लिए एकांत, साफ एवं अच्छी जगह चाहिए। प्रकाश कम रहे तो ठीक होगा |

2) प्रात:काल का समय उचित है। रात के समय सोने के पहले ध्यान उपयोगी है। यह संभव न हो तो किसी भी अनुकूल समय में ध्यान किया जा सकता है।

3) पद्मासन या सिद्धासन या सुखासन या वज्रासन कर, गर्दन, पीठ, कमर तथा रीढ़ की हड़ी को सीधा रख कर आंखें बंद करके ध्यान करते हुए मन को उसमें लीन करना चाहिए|

4) हर दिन ध्यान करते रहना चाहिए। इसकी आदत डालें तो सभी दृष्टियों से लाभ ही लाभ है।


2. ध्यान में सहयोग देने वाले साधन

ध्यान के सहयोगी साधनों में योगासन, प्राणायाम, विचारों के दर्शन, विचारों का संस्करण, विचारों का विसर्जन, त्राटक, ध्वनियोग तथा मंत्र जप आदि मुख्य हैं।

1) योगासन

योगासन करने से “स्थिरं सुखं आसनं” की स्थिति प्राप्त कर सकते हैं। आसनों से ध्यान को शक्ति मिलती है।

2) प्राणायाम

यह चित्त की एकाग्रता के लिए सहायक है।प्राणायाम करते समय मन श्वासप्रश्वास पर केन्द्रित होगा और इससे मन स्थिर होकर ध्यान के लिये तैयार होगा।

3) विचारों के दर्शन

ध्यान के लिए बैठते ही तरह-तरह के विचार उठते हैं। आरंभ में उन्हें रोकने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए। रास्ते पर चलते समय हम कई लोगों को देखते हुए तटस्थ भाव से आगे बढ़ते हैं। इसी तरह इन विचारों के बारे में हमें तटस्थ रहना चाहिए। यह आसान काम नहीं है। फिर भी सदा इसके लिए प्रयास करते रहना चाहिए।

4) विचारों का संस्करण

ध्यान में बैठते ही अनेक विचार मन में उठते हैं।उन्हें एक-एक करके आने देना चाहिए। मस्तिष्क को शांत करना चाहिए।

5) विचारों का विसर्जन

विचारों का एक-एक करके विसर्जन करना चाहिए। धीरे-धीरे मन निर्विचार होगा। यह आसान काम नहीं है, फिर भी ऐसा करना ही चाहिए। महर्षि पतंजलि ने इसे प्रत्याहार कहा। इस स्थिति में मनुष्य पहुँच सके तो समझे कि उसका ध्यान प्रगति मार्ग पर है।

6) धारणा या एकाग्रता

किसी शब्द, आकार, मंत्र या प्रतिमा व मूर्ति या नाभि, हृदयकमल, कंठ, तथा भृकुटि जैसे शारीरिक शक्ति केन्द्रों में से किसी एक पर मन को एकाग्र करना चाहिए। यह ध्यान की प्रथम स्थिति है |

7) ध्यान

धारणा की स्थिति में गहराई तक जाते हुए शरीर, मन और आत्मा तीनों की एकात्म्यता साधे। यही इसकी विशेषता है। यह दिव्य स्थिति ही ध्यान की चरम स्थिति है।


3. ध्यान के लिए सहायक क्रियाएँ

उपर्युक्त ध्यान की क्रियाओं की सफलता के लिए निम्नलिखित विधियाँ सहायक हैं। इसलिए समय निकाल कर इनका अभ्यास करते रहना चाहिए।


1) त्राटक

मन की तरह आँखें भी चंचल हैं। इसलिए आँखों को किसी वस्तु या ज्योति में एकाग्र करना चाहिए। इससे मन भी एकाग्र होगा। तब ध्यान सुलभ हो जाता है।

2) ध्वनि योग

नाद या अन्य कोई दिव्य ध्वनि मुँह से उच्चरित करते हुए, उस ध्वनि में लीन होना ध्यान के लिए बड़ा सहायक है। नाद की ध्वनि नाभि से निकल कर हृदय से होकर बाहर निकलती है। उस ध्वनि में लीन होने से ध्यान को बड़ा बल मिलेगा। धीरे-धीरे बाहय ध्वनि कम होगी और अंत:ध्वनि सुनायी पड़ेगी वही नाद- ब्रह्मनाद कहलाता है।

3) मंत्रजप

गुरु के द्वारा प्राप्त उपदेश या मंत्र या और किसी दिव्य मंत्र को श्वास-प्रश्वास से मिलावें और अंदर ही अंदर उसे जपते रहें तो एकाग्रता स्थिर होगी। ऊँ ऊँ नम: शिवाय, गायत्री मंत्र, नमस्कार महामंत्र, अल्लाहो अकबर, वाहे गुरु या सोहम आदि विभिन्न धर्मों के मंत्रों का उच्चारण स्पष्ट रूप से करें। स्नान के बाद साफ कपड़े पहन कर यह जप करें। इससे मानसिक शांति मिलेगी। इसके लिये मंत्रमाला का भी उपयोग कर सकते हैं | इन मंत्रों का बाह्य उच्चारण कम होकर अांतरिक उच्चारण हो जाये, यही दिव्य स्थिति है।

4) कुंडलिनीयोग – सप्तचक्र

ध्यान योग से संबंधित अनेक विधियाँ हैं। उनमें तांत्रिक शास्त्र से संबंधित कुंडलिनी जागृति और उससे संबंधित सप्तचक्र भेदन की विधि बड़ा महत्व रखती है।

योगीश्वरों के कथनानुसार शरीर में सातचक्र हैं। वे सूक्ष्म छायाओं के समूह हैं |

इन 7 चक्रों के निम्न नाम हैं :

1. मूलाधार चक्र, 2. स्वाधिष्ठानचक्र, 3. मणिपूर चक्र, 4. अनाहत चक्र, 5. विशुद्ध चक्र, 6. आज्ञाचक्र, 7. सहस्रार चक्र 

तांत्रिकों के अनुसार बिंदुचक्र नामक और एक आठवां चक्र भी है। ये चक्र ध्यान में सहायक होते हैं।

कागज़ में जैसे पिन चुभोते हैं वैसे ही एक-एक चक्र में मन को पिरोना चाहिए। यह चक्र भेदन कहलाता है। गुरु के आदेशानुसार नियमबद्ध होकर अभ्यास करें तो कुंडलिनी शक्ति जागृत होगी। सावधानी से न करें तो नुकसान भी हो सकता है।

कुशल मार्गदर्शन प्राप्त कर, उपर्युक्त चक्रों में से अपने लिए अनुकूल चक्र में मन को लोन कर उससे संबंधित क्रियाओं का अभ्यास करें।

उपयुक्त विवरण के अलावा ध्यान से संबंधित विपश्यना, भावातीत ध्यान, अजपाजप, सिद्ध समाधि योग, ओशो ध्यान, प्रेक्षा ध्यान तथा जीवन जीने की कलाएँ आदि अनेक ध्यान पद्धतियाँ संसार में प्रचलित हैं| साधक उनमें से किसी भी पद्धति को अपना कर अपना जीवन सार्थक बना सकते हैं।






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