मेरी वास्तविक पहचान क्या है? – कौन हूँ मैं?

By Sadhak Anshit Yoga Classes
1st September, 2019

आप सभी के मन में कभी ना कभी ये सवाल जरूर आया होगा की आखिर “मैं कौन हूँ?” 

आज इस ब्लॉग में, मैं आपको बताऊंगा की वास्तव में आप कौन हो। चलो फिर जीवन के सबसे पेचीदा सवालों में से एक का जवाब जानते हैं।


कौन हूँ मैं? Who am I? 

जीवन की भागदौड़ में हम सब इतने व्यस्त हो जाते हैं, की हम अपने इन सवालों को हमेशा ही अनदेखा करते हैं की आखिर कौन हूँ मैं और मेरी वास्तविक पहचान क्या है? मेरी सीमाएं और छमताएँ क्या हैं? क्या मैं वही हूँ जो मैं अपने बारे में जनता हूँ या मैं वो हूँ जो मुझे अपने बारे में दूसरो ने बताया है?

आज इन सभी सवालों के जवाब इस ब्लॉग में जानेंगे ।

अगर अभी मैं आप लोगों से पूछता हूँ, की आप कौन हैं? शायद पचासों तरह के या उससे भी ज्यादा जवाब आएँगे, 6 खास जवाब आपको बताता हूँ।

1. मुझे नहीं पता ।

2. कुछ अपना नाम या अपना पेशा बताएंगे ।

3. क्या फर्क पड़ता है मैंने कभी सोचा नहीं ।

4. कुछ अपने शरीर को ही अपने आप समझते हैं ।

5. कुछ थोड़े समझदार हैं, वो अपने मन को खुद समझते हैं ।

6. कुछ ही ऐसे होंगे जो अपने आप को आत्मा के रूप में देखते होंगे ।

चलो मैं बताता हूँ, वास्तव में आप एक असंख्य छमताओं, सामर्थय और ऊर्जा वाली एक आत्मा हो जो की उस परम पिता परमात्मा का ही अंश है।

आपकी कोई सीमाएं नहीं और आप जो चाहो वो कर सकते हो, आप किसी से बड़े या छोटे नहीं, आप किसी से शक्तिशाली या कमजोर नहीं और वास्तव में हम सभी एक हैं, बस इसे समझना बाकि है।

आप में से कुछ सोच रहे होंगे की ये सब तो हमें पता है, पर मेरा उदेश्य भी आपको सिर्फ ये बताना नहीं की आप एक आत्मा हो, बल्कि मेरा उदेश्य आज आपको वास्तव में आप से मिलाने का है, इसे अनुभव कराने का है।

अब बिना देर करे इस एक सवाल का जवाब ढूंढने का प्रयास करते हैं, कौन हूँ मैं?


कैसे जानें “कौन हूँ मैं?”

ये जानने के लिए आपको ध्यान करना होगा, इसका आसान तरीका में बताता हूँ।

आप कमर और गर्दन को सीधे कर के बैठ जाएं, अपने हाथ, पैर और कन्धों को बिलकुल ढीला छोड़ दें और आँखें बंद रखें।

फिर ध्यान रखें शरीर और मन की सभी हरकतों जैसे हिलना, खुजलाना, सुनना, बोलना और सबसे जरूरी सोचना इन सभी को बंद कर दें।

अब आप सोच रहे होंगे की सब कुछ बंद करना है तो फिर करना क्या है, आपको अपनी स्वाभाविक सांसों पे ध्यान देना है, ना तो जान-बुझ के साँस लें और ना ही जान-बुझ के छोड़ें, बस सांसों को स्वाभाविक रूप से आते और जाते हुए एक दर्शक की तरह देखना है।

बस यहीं से खेल शुरू  होता है।

आपका मन इधर उधर भागेगा, जैसे इधर उधर की आवाजें, तरह तरह के विचार, शरीर की हरकतें और भी बहुत कुछ।

ध्यान रखना जब भी आप कुछ सोचें तो समझ जाना ये आपका मन है जो की आपको तरह तरह की जानकारियां दे रहा है, आप उन विचारों से ध्यान हटा कर फिर से अपनी सांसों पे ध्यान दें।

ये ध्यान विधि इतनी आसान नहीं है, आपको निरंतर इस विधि का अभ्यास करते रहना है।

पहले दिन आप एक से 20 मिनट तक ये करें, फिर एक एक मिनट हर रोज बढ़ाएं और तब तक बढ़ाएं जब तक आप अपनी उम्र के बराबर मिनट तक ध्यान नहीं करते।


निष्कर्ष:

अगर आप बिना कुछ सोचे अपनी सांसों पे ध्यान लगाओगे, तो आप ऐसी ऐसी चीजें अनुभव करेंगे जिससे आप जान जाओगे की आप वास्तव में कौन हो।

आप जान जाओगे की आप शरीर और मन के परे हो, आप जान जाओगे की आप शरीर नहीं आप इस शरीर में रहते हो।

आप धीरे धीरे ये जान जाओगे के आप अपार और असीमित हो। ये शरीर, मन तथा दिमाग आपके लिए है, आप ये नहीं हो।

आपको अपनी खोज खुद से ही करनी होगी, कोई दूसरा इसमें आपकी मदद नहीं कर सकता, क्यू की किसी और को क्या पता आपके अंदर क्या चल रहा है।

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