सप्त चक्र और कुंडलिनी को कैसे जागृत करे ?


आयुर्वेद और भारतीय पारंपरिक औषधि विज्ञान के अनुसार शरीर में सात चक्र होते हैं। जिन्हें सप्त चक्र या ऊर्जा की कुंडली भी कहते हैं। सामान्यतः क्रमशः तीन चक्र भी किसी व्यक्ति में जागृत हो तो वह व्यक्ति स्वस्थ कहलाता है।

कुंडलिनी को जब जागृत किया जाता हैं तब यही सप्त चक्र जागृत होते हैं। इन सात चक्र का जागृत होने से मनुष्य को शक्ति और सिद्धि का ज्ञान होता हैं। ऐसा कहा जाता है की वह व्यक्ति भुत और भविष्य का भी जानकारी हो जाता हैं। विज्ञानं इस बात को नहीं मानता पर हमारे पुराने किताबों और वेदों में इसका जिक्र किया गया हैं।

हमारे शरीर में लगभग 72000 नाड़ियां है। जिनमें शरीर का संचालन करने में प्रमुख 12 नाड़ियां दिमाग में है। आध्यात्मिक रूप से इडा, पिंगला और सुषुम्ना का जिक्र है। इंडा-पिंगला के सक्रिय होने के बाद ही सुषुम्ना जागरूक होती है जिसके बाद सप्त चक्र जागृत होते हैं। मूलाधार चक्र जागरूक होने के बाद रोग धीरे-धीरे दूर होने लगते हैं जिससे अन्य चक्र भी जागरुक होते हैं। 


सप्त चक्र और कुंडलिनी को कैसे जागृत करे इसकी जानकारी नीचे दी गयी हैं


1. मूलाधार चक्र / Base Chakra

स्थान : यह रीढ़ की सबसे निचली सतह पर गुदा और लिंग के बिच होता है। इस चार पंखुरिया वाले चक्र को आधार चक्र भी कहा जाता हैं।

भूमिका : यह शरीर के दाएं और बाएं हिस्से में संतुलन बनाने, अंगों का शोधन करने का काम करता है। यह पुरुषों में टेस्टिस और महिलाओं में ओवरी की कार्य प्रणाली को सुचारू रखता है। यह वीरता और आनंद का भाव दिलाता हैं। 99% लोगो की चेतना इसी चक्र मर अटकी रहती हैं।

मंत्र : लं

मूलाधार चक्र को कैसे जागृत करें: शरीर की गंदगी दूर करने वाले योगासन से यह जागृत होता है। जैसे मॉर्निंग वॉक करना, जॉगिंग करना, स्वस्तिकासन, पश्चिमोत्तानासन जैसे आसन और कपालभाती प्राणायाम से मानसिक शारीरिक शांति और स्थिरता बनती है। भोग, निद्रा और सम्भोग पर काबू रखने से इसे जागृत किया जा सकता हैं। 


2. स्वाधिष्ठान चक्र / Sacral Chakra

स्थान : रीढ़ में पेशाब की थैली (यूरिनरी ब्लैडर) के ठीक पीछे स्थित होता है। इस चक्र में 6 पंखुरिया होती हैं। आपकी ऊर्जा एक चक्र पर एकत्रित होने पर मौज-मस्ती, घूमना-फिरना की प्रधानता होंगी।

भूमिका : यह अनुवांशिक / Genetic, यूरिनरी और प्रजनन प्रणाली पर नजर रखने के साथ ही जरूरी हारमोंस के स्त्रावण को नियंत्रित करने में मददगार है। इस चक्र के जागृत होने से क्रूरता, अविश्वास, गर्व, आलस्य, प्रमाद जैसे दुर्गुणों का नाश होता हैं।

मंत्र : वं

कैसे करें जागृत करे : जानूशीर्षासन, मंडूकासन, कपालभाति 10 से 15 मिनट के लिए नियमित करें। जीवन में मौज-मस्ती और मनोरंजन जरुरी है पर इसे नियंत्रित रखने से आप इसे जागरूत कर सकते हैं।


3. मणिपुर चक्र / Solar plexus

स्थान : यह ठीक नाभी के पीछे होता है। इसमें 10 पंखुरिया होती हैं। जिस व्यक्ति की ऊर्जा यहाँ एकत्रित होती है वह अधिक कार्य करते हैं और कर्मयोगी कहलाते हैं।

भूमिका : यह पाचक व अंत स्त्रावी ग्रंथि से जुड़ा है। पाचन तंत्र को मजबूती देने व शरीर में गर्मी व सर्दी के सामंजस्य को बनाता है। मणिपुर चक्र के जागृत होने से तृष्णा, भय, लज्जा, घृणा, मोह आदि भाव दूर होते हैं। आत्मशक्ति बढ़ती हैं।

मंत्र : रं

ऐसे करें जागृत : पवनमुक्तासन, मंडूकासन, मुक्तासन, भस्त्रिका। कपालभाति प्राणायाम 10 से 15 मिनिट रोजाना करें


4. अनाहत चक्र / Heart Chakra

स्थान : रीढ़ में ह्रदय के पीछे थोड़ा नीचे की ओर स्तिथ होता है। इस चक्र में 12 पंखुरिया होती हैं।

भूमिका : ह्रदय और फेफड़ों को सफाई कर इनकी कार्य क्षमता को सुधारता है। इसके जागृत होने से कपट, हिंसा, अविवेक, चिंता, मोह, भय जैसे भाव दूर होते हैं। प्रेम और संवेदना जागरूक होती हैं।

मंत्र : यं

ऐसे करे जागृत : उष्ट्रासन, भुजंगासन, अर्द्धचक्रासन, भस्त्रिका प्राणायाम करें। ह्रदय पर संयम रखे।


5. विशुद्धि चक्र / Throat Chakra

स्थान : यह गर्दन में थायराइड ग्रंथि के ठीक पीछे स्थित होता है। यह 16 पंखुरियों वाला चक्र हैं।

भूमिका : बेसल मेटाबोलिक रेट (BMR) को संतुलित रखता है। पूरे शरीर को शुद्ध करता है। इस 16 पंखुरियों वाले चक्र को जागृत करने से 16 कला का ज्ञान होता हैं। भूक और प्यास को रोक जा सकता हैं। मौसम के प्रभाव को रोक जा सकता हैं।

मंत्र : हं

ऐसे करें जागृत : हलासन, सेतुबंध आसन, सर्वांगासन और उज्जाई प्राणायाम करें।


6. आज्ञा चक्र / Brow Chakra

स्थान : चेहरे पर दोनों भोहों के बीच स्थित होता है। इस चक्र में अपार सिद्धिया और शक्तिया निवास करती हैं। 

भूमिका : मानसिक स्थिरता व शांति को बनाए रखता है। यह मनुष्य के ज्ञान चक्षु को खोलता है।

मंत्र : ऊँ

ऐसे करें जागृत : अनुलोम-विलोम, सुखआसन, मकरासन और शवासन करें।


7. सहस्त्रार चक्र / Crown Chakra

स्थान : सिर के ऊपरी हिस्से के मध्य स्थित होता है। इसे शांति का प्रतीक भी कहते हैं। यही मोक्ष का मार्ग भी कहलाता हैं।

भूमिका : शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक व सामाजिक सभी स्तर में सामंजस्य बनाता है।

ऐसे करें जागृत : बाकी छह के जागृत होने पर यह चक्र स्वतः ही जागृत हो जाता है। लगातार ध्यान करने से यह चक्र जागृत होता हैं। 


सप्त चक्रों को जागृत करने के लिए आहार और व्यवहार में शुद्धता और पवित्रता की जरुरत होती हैं। स्वयं की दिनचर्या में जल्दी उठना, जल्दी सोना, सात्विक आहार, प्राणायाम, धारणा और ध्यान करना जरुरी होता हैं। अपने मन और मस्तिष्क को नियंत्रण में रखकर आप 6 महीने तक आप लगातार चक्रों को जागृत करने का प्रयास करे तो कुंडलिनी जागरण होने लगती हैं। इसके लिए आपको योग गुरु की सलाह लेनी चाहिए।

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