वैज्ञानिक रहस्‍य प्राणायाम के - साधक अंशित

By Sadhak Anshit Yoga Classes
4th October, 2019

धर्म और रिवाज़ हों या सदियों पुरानी योग क्रियाएं, कहीं न कहीं इस सबके साथ विज्ञान जुड़ा ही होता है। योग के अभिन्न अंग प्रणायाम पर भी ये बात लागू होती है। प्राणायाम करने के साथ भी विज्ञान जुड़ा हुआ है।

तो चलिये आज आपको प्राणायाम के पीछे छिपे वैज्ञानिक रहस्‍य के बारे में जानकारी देते हैं। 


श्वसन तंत्र का खाका

दरअसल हमारा श्वसन तंत्र नासिका से शुरू होता है, और वायुकोषों तक फैला हुआ होता है। जब हम नाक से सांस लेते हैं तो ये स्वर यंत्र और ग्रसनी (फैरिंक्स) से होते हुए श्वास नली (ट्रैकिया) में पहुंचती है। और फिर गर्दन के नीचे छाती में यह पहले दाएं-बाएं दो भागों में बंटती है और फिर पेड़ की शाखाओं-प्रशाखाओं की तरह पंद्रह से भी अधिक बार विभाजित होते हुए श्वसन वृक्ष बनाती है। यहां तक का श्वसन वृक्ष वायु संवाहक क्षेत्र (एयर कंडक्टिंग ज़ोन) कहलाता है। इसकी अंतिम शाखा जो कि टर्मिनल ब्रांकिओल कहलाता है, वो भी 5 से 6 बार विभाजित होती है और उसकी अंतिम शाखा पंद्रह से बीस वायुकोषों में खुलती है। वायुकोष कुछ अंगूर के गुच्छों के जैसा दिखाई पड़ता है। टर्मिनल ब्रांकिओल से वायुकोषों तक का हिस्सा श्वसन क्रिया को पूर्ण करने में अपनी प्रमुख भूमिका अदा करता है। इसे श्वसन क्षेत्र (रेस्पिरेटरी ज़ोन) कहा जाता है।

श्वास नली के इस वृक्ष की सभी शाखाओं-प्रशाखाओं के साथ रक्त को लाने और ले जाने वाली रक्त वाहिनियां भी होती हैं। पल्मोनरी धमनी हृदय से अशुद्ध रक्त को फेफड़े तक लाती है और वायुकोषों में शुद्ध हुआ रक्त छोटी शिराओं से पल्मेरनरी शिरा के माध्यम से दोबारा हृदय तक पहुंच जाता है। सामान्य श्वसन क्रिया (टाइटल रेस्पिरेशन) में फेफड़े के केवल 20 प्रतिशत भाग को ही कम करना पड़ता है। बाकी बचे भाग तो निष्‍क्रिय से ही रहते हैं और नैसर्गिक रूप से इस निष्क्रिय से हिस्सों में रक्त का प्रवाह भी बेहद धीमा होता है। अगर कोई व्यक्ति रोज़ाना व्यायाम न करें, तो वायुकोषों को पर्याप्त ताजी हवा और बेहतर रक्त प्रवाह से नहीं मिल पाता है। यही कारण है कि जब हम सीढ़ियां या छोटा पहाड़ चढ़ते हैं या दौड़ते हैं, तो सांस बुरी तरह से फूलने लगती है। ऐसा इसलिये, क्योंकि आलसी पड़े करोड़ों वायुकोष काम नहीं कर पाते हैं।


प्राणायाम करने पर क्या होता है?

जब हम प्राणायाम करते हैं, तो डायफ्राम सात सेंटीमिटर तक नीचे जाता है, पसलियों की मांसपेशियां भी अधिक सक्रीय होती हैं और ज्यादा काम करती हैं। इस प्रकार फेफड़े में ज्यादा हवा घुस पाती है और 100 प्रतिशत वायुकोषों को भरपूर ताजी हवा मिलती है। साथ ही रक्त प्रवाह भी बढ़ जाता है। इसी तरह दोनों फेफड़ों के बीच बैठा हृदय सब तरफ से दबाया जाता है, परिणाम स्वरूप इसको भी ज्यादा काम करना ही पड़ता है। रक्त के इस तेज प्रवाह के चलते वे कोशिकाएं भी पर्याप्त रक्तसंचार, प्राणवायु और पौष्टिक तत्व से भर जाती हैं, जिन्हें सामान्य स्थिति में बेकार रहना पड़ रहा था।


प्रणायाम करने से फैफड़ों सहित पेट के सभी अंगों के क्रियाकलाप सम्यक रूप से होने लगते हैं। ग्रंथियों से रसायन समुचित मात्रा में निकलते हैं, विजातीय पदार्थ बाहर हो जाते हैं, तेज प्रवाह से बैक्टीरिया लचर पड़ जाते हैं, पर्याप्त भोजन प्राणवायु मिलने से कोशिकाओं की रोगों से लड़ने की ताकत बढ़ जाती है, बोन-मेरो में नए रक्त का निर्माण होता है। आंतों में जमा मल बाहर होने लगता है। खाया-पीया शरीर को लगने लगता है, परिणाम स्वरूप स्मरण शक्ति, सोचने-समझने और विश्लेषण की शक्ति बढ़ती है। धैर्य और विवेकशीलता में वृद्धि होती है। कुल मिलाकर कहा जाए तो, आयुर्वेद में स्वस्थ व्यक्ति की जो परिभाषा दी है, वह जीवन में साकार हो जाती है।

‘प्रसन्नत्मेन्द्रियमना स्वस्थ्य इत्यभिधयते’ अर्थात शरीर, इन्द्रियां, मन तथा आत्मा की प्रसन्नतापूर्ण स्थिति ही स्वास्थ्य है।



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